Wednesday, September 10, 2008

9 साल के बच्चे की लव स्टोरी !

प्यार, हर किसी के लिए एक अलग अहसास है। इसकी परिभाषाएं जुदा जुदा हो सकती हैं। रिश्ते नाते संबंध और समाज की बुनावट... भला प्यार का इनसे क्या वास्ता। ये लव स्टोरी है, एक बच्चे की... जिसकी कुल जमा उम्र 9 साल थी। चौथे दर्जे में पढ़ने वाले इस बच्चे की जिंदगी में पहली बार टीवी दाखिल हुआ था। यूं तो वो पहले भी रामायण और महाभारत जैसे सीरियल्स दूसरों के घर जाकर देखा करता था। मगर ऐसा पहली बार हुआ था कि टीवी खुद उसके घर में हो। दरअसल पढ़ाई करने के लिए उसे अपनी बुआ के यहां भेज दिया गया था। जहां उसके लिए टीवी ही सबसे बड़ी उपलब्धि थी। लिहाजा अब वो सीरियल्स के साथ साथ फिल्में भी देखने लगा। ज्यादातर फिल्मों में एक लड़का और एक लड़की के बीच प्यार जैसे किस्से दिखते थे। दूसरे बच्चे इस उम्र में क्या सोचते थे.. कौन सी बातें उनके जेहन में घूमती थीं.. इसकी भनक उसे नहीं थी। मगर उसके दिलोदिमाग पर फिल्मों का असर बहुत ज्यादा पड़ा। एक अनजानी लड़की इसी उम्र में सपनों की रानी बन गई थी, जिससे वो बिल्कुल फिल्मी अंदाज में प्यार करना चाहता था। बात थोड़ी अजीब है.. मगर ये सौ फीसदी सच है। अब उसे लड़कियां फिल्मों की किरदार जैसी नजर आती थीं..। लिहाजा वो उनसे घुलमिल भी नहीं पाता था। मगर हर उस लड़की के बारे में कल्पनाएं बुनता था.. जो कभी कभार उससे प्यार से पेश आ जाती थी। शायद वो अपने उम्र के लड़कों से बड़ा हो चुका था। इसी उम्र में उसमें तमाम वो अहसास पैदा हो चुके थे... जो आम तौर पर जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए किशोरों के दिलों में जगते हैं। बुआ के यहां रहने के लिए उसे अपनी मां से दूर जाना पड़ा था..। सो कहीं न कहीं ये कमी भी.. उसे ऐसे सपनों में डूबने उतराने के लिए जिम्मेदार रही। कोई लड़की उसे कुछ खाने को देती..कोई लड़की उससे कॉपी मांग लेती... या फिर कोई लड़की उससे कुछ देर बात भी कर लेती तो उस दिन के बाद वो उसकी जूलिएट बन जाती। दिन रात खयालों में बस उसी का चेहरा। यहां तक कि फिल्में देखते वक्त.. हिरोइन की जगह उसका ही चेहरा दिखता। उस बच्चे के स्कूल में उसकी बुआ की रिश्ते की ननद भी पढ़ती थी.. वो भी उसी की क्लास में। जाहिर है, उसकी उम्र भी कुछ वही रही होगी। घर आस पास थे। लिहाजा उसकी पहली महिला मित्र वही लड़की बनी। स्कूल में बातचीत का सिलसिला चल पड़ा था... एक दूसरे के घर भी आने जाने लगे। खेलकूद से लेकर मारपीट तक हर जगह वो साथ थे। 9 साल के उस बच्चे की कोरी कल्पनाओं में रंग सा भर गया था.. उसकी कल्पनाओं की प्रेमिका उसे मिल गई थी। फिल्म ठीक ठाक चल रही थी, तभी एक दिन विलेन की एंट्री हुई। दरअसल उसके फूफाजी का ट्रांसफर हो गया। और अब उन्हें कहीं और जाना था। उसके अलावा उस परिवार के बाकी सारे लोग खुश थे। नए और अपेक्षाकृत बड़े शहर में रहने की हसरतें हिलोरें मार रही थीं...। मगर वो बच्चा बेहद उदास हो गया। उसे बाकी कोई चिंता नहीं थी... परेशानी थी तो बस ये वो अपनी प्यारी दोस्त से दूर हो जाएगा। वो छिप छिपकर रोता था। गुमशुम रहता था, मगर किसी से कहे तो क्या कहे। शायद वो अपनी उम्र से कोसों दूर निकल चुका था। उसके अहसास इसी उम्र में जवान हो चुके थे। आखिरकार एक दिन सारा सामान बांधकर.. । उस शहर से जाना पड़ा। और हमेशा के लिए उसका पहला प्यार अधूरा रह गया। ऐसा नहीं वो उस लड़की से दोबारा नहीं मिला... मिला मगर सालों बाद जब वो बड़ा हो चुका था। और अबकी बार वो तमाम अहसास कहीं नहीं थे। क्योंकि बड़े होने के साथ साथ वो दुनिया की तमाम हकीकतों से वाकिफ हो चुका था। दरअसल, ये लव स्टोरी 9 साल के लड़के की थी। जो जानता तक नहीं था.. कि रिश्ते की बुआ के साथ भी ऐसे सपने बुने नहीं जा सकते..। यूं तो ये मेरी अपनी ही कहानी है। मगर अब महसूस नहीं होता..क्या वो मैं ही था,या कोई और...?

7 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

शानदार...

seema gupta said...

" great story to read about, these are our childhood memories which some times make us laugh also, interesting to read"

Regards

रंजन (Ranjan) said...

"एक छोटी सी प्रेम कहानी"

Udan Tashtari said...

बेहतरीन..

एस. बी. सिंह said...

स्मृतियों के सूत्र
खिसकने लगते हैं
मुट्ठी से ,
चाहे कितना कस कर पकडो।
जीवन पहुँच जाता है
कहीं से कहीं।

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

badaa aatmiye aur umdaa hai aap ki pram khani ,ummid karta hu aage bhi aap apni baat itnin hi bebaki se rakhte rahenge .

Anonymous said...

असल में वो आपका बचपना था प्याअर नहीं । बचपन की बाते कल्पना की हदे पार कर जाती है । इसमें दोष आपका नहीं परिस्थितियों का है । खैर आप समय रहते संभल गए , आपके लिए , आपके परिवार के लिए और समाज के लिए अच्छा। है ।
- उदयराज़