Sunday, September 7, 2008

आखिर क्यों नहीं हो पाती एंकर्स से दोस्ती ?

न्यूज एंकर.. यानि चेहरा किसी भी चैनल का। एक ऐसा शख्स जिसे हर हाल में खबर पढ़नी है.. बेशक टेली प्रांप्टर काम करना बंद कर दे। या फिर, टीवी स्क्रीन पर विजुउल्स फ्रीज हो जाएं...वो चुप नहीं हो सकता...उसके पास कोई एक्स्क्यूज नहीं हो सकता। स्टार न्यूज में तकरीबन पौने दो साल काम करते हुए.. गिने चुने एंकर्स से ही मेरी बात होती थी.. कुछ से इसलिए कि अभी वो बड़े एंकर नहीं हो पाए थे.. तो कुछ से इसलिए कि मेरा शो उनको ही करना था। यानि कुल मिलाकर ये एक किस्म की आपसी मजबूरी का नतीजा था। बाकी के तमाम एंकर्स ऐसे भी थे.. जिनसे जान पहचान तक नहीं हो पाई... वजहें तमाम थीं, मसलन बड़े चैनल का बड़ा एंकर.. किसी को बस यूं ही मुंह नहीं लगाना चाहता। दूसरी वजह ये कि खुद को जर्नलिस्ट मानने वाले मेरे जैसे डेस्क के कारिंदों की एंकर्स के बारे में धारणा। मसलन एंकर करता ही क्या है.. उसे तो बस पका पकाया मिल जाता है...जान तो उनकी जाती है जिन्हें टीवी पर दिखने का सुख नसीब तक नहीं होता। खैर, नए संस्थान में आकर ये गलतफहमी काफी कुछ दूर हो गई है। इसके अलावा एक बड़ी वजह ये थी..कि एंकर्स की बिरादरी में महिलाओं की तादाद भी अच्छी खासी होती है। स्टार न्यूज भी इसका एक्सेप्शन नहीं था... अब एक तो महिला..ऊपर से खूबसूरत.. उस पर भी जलवा ये कि मैडम को करोड़ों लोग टीवी पर निहारते हैं। ऐसे में दिमाग सातवें आसमान पर पहुंचे.. ऐसे एकाध ही उदाहरण मेरे सामने थे। लिहाजा मेरी ठसक भी एंकर्स से मेल जोल के आड़े आई। और इसका खामियाजा ये हुआ कि मैं चैनल में काम करने वाले उस एलीट क्लास का हिस्सा नहीं बन पाया.. जो केवल एंकर्स (महिला) से हंसी मजाक करते थे.. बल्कि फ्लर्टिंग तक की रियायत का मजा उठाते थे। जिस वक्त वो एंकर्स से बातचीत कर रहे होते थे...खुशी और अहंकार से फूलकर उनका सीना बाहर को निकल आता। और इस सुख से वंचित लोग उन्हें ऐसे देखते जैसे...छप्पन भोग का मजा लेने वाले को कोई भूख से बिलबिलाता इंसान देखता है। एक खास बात और ये.. कि डेस्क या रिपोर्टिंग में ज्वाइन करने वाला कोई भी जूनियर हर वक्त यही जानने की ताक में रहता कि फलाना एंकर की तनख्वाह कितनी है। ले देकर एंकर्स का अपना ही जलवा होता है.. ट्रेनी से लेकर चैनल के सीईओ तक को उनसे बात करते हुए एक अलग ही किस्म का अहंकारबोध होता है, जैसे एंकर किसी और ही ग्रह से धरती पर उतरे हों.. रनडाउन पर बैठने वाले प्रोड्यूसर बिरादरी के लोग कई बार उनका जलवा हजम नहीं कर पाते हैं.. लिहाजा किसी ना किसी बहाने उन्हें हड़काने का मौका कोई चूकता नहीं। मगर ये बात बड़े चैनल या छोटे चैनल के निरीह छोटे एंकर्स पर ही लागू होती है। बड़े एंकर्स तो हमेशा बड़े होते हैं.. वो छोटे चैनल में हों या फिर बड़े चैनल में। बड़ा एंकर होने का मतलब ये कतई नहीं है.. कि साहब बहुत काबिल हैं। ज्यादातर बड़े एंकर इसलिए बड़े होते हैं क्योंकि वो बड़ी से बड़ी गलती करने के बाद भी आन एयर सहज रहते हैं। जबकि छोटा एंकर हड़बड़ाकर सॉरी बोल ही पड़ता है। और बॉसेज को पता चल जाता है कि फलाना बहुत गलती करता है.. लेकिन एक बात तो तय है.. एंकर छोटे चैनल का हो.. या फिर बड़े चैनल का। उसके जेहन में ये हमेशा घूमता रहता है.. वो अलग है.. कुछ खास है। बेशक उसे ठसमठस्स भरी बस में ही सफर क्यों ना करना पड़ता हो... उसे वही सड़ा हुआ कैंटीन का खाना क्यों ना खाना पड़ता हो...उसे ड्रॉपिंग के लिए घंटों इंतजार क्यों ना करना पड़ता हो.. भला वो खुद को आम क्यों समझ ले... उसके नाम पर तो आर्कुट जैसी कम्यूनिटी वेबसाइट्स पर फैन्स क्लब तक बने होते हैं। कुछेक एंकर्स को मैं जानता हूं.. जिनके लिए बकायदा लड़कियों की चिठ्ठियां तक आती हैं...,जिसमें वो अपना कलेजा ही निकालकर रख देती हैं। अगर आप गौर करें तो दर्जनों न्यूज चैनल पर हर रोज पचासों एंकर दिखते हैं.. मगर नाम से जिन्हें लोग पहचानते हैं.. उनमें विनोद दुआ, दिबांग, पुण्यप्रसून वाजपेयी, अजय कुमार, दीपक चौरसिया, करन थापर और अलका सक्सेना जैसे एंकर्स अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं... मगर शोहरत की वर्चुअल दुनिया में टहलने वाले ज्यादातर एंकर इस बात को महसूस नहीं कर पाते..शायद यही वजह है एक ही संस्थान में काम करने वाले लोग बिल्कुल उतने ही दूर होते हैं.. जितना कि हजारों मील दूर बैठा वो दर्शक जिसे ये वहम होता है.. कि एंकर को सारी खबरें याद होती हैं.. और वो खटाखट बोलता जाता है.... हो सकता है, दूसरों के तजुर्बे अलग हों.. मगर मैं आज तक नहीं समझ पाया.. आखिर क्यों नहीं हो पाती एंकर्स से दोस्ती ?

8 comments:

राजीव जैन said...

koshish kijiyee bandhuver samaj aa jaega

मनीषा भल्ला said...

आपके ब्लॉग पर 'बोलती तस्वीरें' बहुत सुंदर हैं....

Satyendra Prasad Srivastava said...

लगता है बहुत परेशान हैं?

विवेक सत्य मित्रम् said...

सत्येन्द्र जी, पहले तो इस बात के लिए शुक्रिया आपने टिप्पणी करने की अतिरिक्त मेहनत भी की, मगर आपको मैं बताना चाहता था,इसमें परेशान होने जैसी कोई बात नहीं है। मैं सिर्फ और सिर्फ अपने अनुभव बांट रहा हू्ं..जो बेहद सब्जेक्टिव मामला है।
हां, कोई भी इस लेख का मतलब अपने अपने हिसाब से निकाल सकता है..जैसा कि आपने। खैर..।

sushant jha said...

maine bhi ek dafa dosti ki koshish ki thi...lekin mera bhi apna swarht tha...albatta woh pehle se engaged thi aur dimag se khaali bhi...lekin mujhe abhi bhi afsos hai.ki main nahin pata paya..!!!

सुबोध said...

एक चैनल के अंदर कितना ज्यादा कम्यूनिकेशन गैप हो सकता है मैने दिल्ली में आकर देखा...एक साथ काम करके भी हमें कभी कभी दूसरो का नाम याद करना पड़ जाता है..बेहतरीन... आपका ये अंदाज ए बयां कुछ हटकर है... मजा आ रहा है पढ़ने में

Rajiv K Mishra said...

एक एंकर (महिला) से आजकल थोड़ी दोस्ती हो गई है। दोस्ती क्या है....उसके अहं की तुष्टि हो जाती है। पहले अच्छी इंसान लगी, फिर किसी ख़ास ने बताया कि वो दूसरे एंकरों को गाली देती है। उस एंकर की टीआरपी जीरो हो गई। वो आज भी बात करना चाहती है...लेकिन मैं ही बचता हूं। जो एक अच्छा इंसान नहीं हो पाया वो एंकर, टेंकर पीएम कुछ भी हो...कम से कम मैं तो भाव देने वाला नहीं हूं। दरअसल एंकरों के मनोवैज्ञानिक व्याख्या होनी चाहिए...करोड़ों लोग उन्हें टीवी पर देखते हैं, ऐसे में थोड़ा अहंकार हो जाए तो बहुत आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसे मैं कुछ ऐसे न्यूज़ रीडर को भी जानता हूं, जो बेहतरीन इंसान हैं। अफ़सोस उस कैटगरी में कोई महिला एंकर नहीं है। ऐसा नहीं है, नहीं होगी...होगी...लेकिन मुझे नहीं मिली है। ऐसे वो हैं तो हैं, हम भी है....रंग रूप से थोड़ा मार खा गया हूं तो क्या हुआ, यह तो इश्वर ने दिया है। जो अपने से बनाया जा सकता है, वो मैने खूब बनाई है। घबराएं नहीं हम डेस्क वाले लंबी रेस के लिए बने हैं। वो कहते हैं न, जलो तो दीपक की तरह...लंबे समय तक, बारूद की तरह नहीं की भक्क....और सब खत्म। हार्डवेयर कमज़ोर है तो क्या हुआ, साफ्टवेयर टनाटन है। ऐसे एक वाक्या बताता हूं...एक एंकर को पिंपल निकल गया, प्रोड्यूसर ने उसकी ऐसी बजाई की मुझे भी उस पर दया आ गया।

Niranjan Kumar said...

acha likha aapne, lekin meri ek rai hai maan loge, yaar anchor se dosti na hi karo to acha hai, main bhi ek aisi anchor ko janta hun jo 25 salon se anchoring kar rahi hai, lekin unki bhasha anphad ganwaro se bhi jyada gai gujri hai. mana media me kuch senior log badtamij hai, lekin unhe dekhar nahi lagta ki koi humare jaisa young Journalist unhe apna aadrsh banaaga. aap samaj gaye honge main kinki baat kar raha hun.