पांच सितंबर, यानि शिक्षक दिवस। आईआईएमसी से डिग्री तो मिली ही, कुछ ताउम्र याद रहने वाली यादें भी मिलीं।उनमें से एक है 5 सितंबर, 2002... अपने कोर्स डायरेक्टर के प्रति सम्मान दिखाने के लिए कविता लिखी थी मैंने...। जिसे उन्होंने अपने कमरे में लगा दिया...। मेरे आईआईएमसी के तत्कालीन साथियों में से कुछ ने इसे चाटुकारिता का प्रतिमान करार दिया था...। जिन्होंने बाद में न जाने कितने ही ऐसे प्रतिमान सचमुच में बनाए। 20 साल की उम्र में मिला ये एक ऐसा घाव था, जिसका जख्म सूख तो गया, मगर उसके निशान बहुत गहरे हैं, जो शायद कभी मन से मिट न पाएं..। लेकिन ये बात मैं यहां इसलिए नहीं लिख रहा कि दो दिन पहले शिक्षक दिवस था। दरअसल, ये मेरा तीसरा ब्लाग है.. इससे पहले बात निकलेगी तो.. और ऑफ द रिकॉर्ड नाम से दो ब्लाग बनाए.. इनमें से एक टेक्निकल प्राब्लम की वजह से विकलांग हो गया तो दूसरा ब्लॉग 'ऑफ द रिकॉर्ड' कम्यूनिटी ब्लॉग की शक्ल ले चुका है... जहां बुद्धिजीवी किस्म के लोग अपनी भड़ास निकालते रहते हैं.. उनमें मैं भी शामिल हूं। मगर कुछ दिनों से लग रहा था, एक निहायत ही निजी ब्लॉग होना चाहिए... सो.. मैंने ये ब्लॉग बना डाला.. कोशिश होगी.. बौद्धिक लफ्फाजी की बजाए... इसे जिंदगी के तजुर्बों का एक कोलाज बनाऊं...इसी क्रम में आईआईएमसी के दिनों का ये नायाब तजुर्बा और इसी बहाने ये पहली पोस्ट...।
Sunday, September 7, 2008
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3 comments:
स्वागत है..नियमित लिखें.
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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
आईआईएमसी देखा तो ठिठक गया। और आप तक पहुँचा। मैं आपसे ठीक दस साल पहले आईआईएमसी में था। आपने कुछ भूली बिसरी याद दिला दी है। लिखिए... खूब लिखिए और पढि़ए भी। वरना अब होता यह है कि जिस दिन कोई पत्रकार बनता है, उस दिन अपने को सर्वज्ञ मानने लगता है। मानो ज्ञान की देवी सरस्वती नहीं वहीं हों। और वह खुद पढ़ना छोड़ दूसरों को पढ़ाने लगता है। इसे उपदेश नहीं, सलाह सुझाव... माने। न मानने की इच्छा हो तो दरकिनार कर दे। अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
ka guru tumne to vajpayee ki aisi ki taisi kar di. kya bat hai. vaise thik likhe hain.
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