उसकी उम्र कुछ 65 के आस पास होगी। मुश्किल से 4 फीट की कद काठी। झुर्रियों से भरा चेहरा.. और आंखें ऐसी मानो हर सबको शक के निगाह से देखती हो। 50 साल पहले वो आई थी.. इस घर में। उसका मजहब इस्लाम है। वो पक्की मुसलमान है। मगर उसे देवी गीत से लेकर तमाम भजन जुबानी याद हैं। उसे हिंदू रीति रिवाज से होने वाले शादी विवाह के गीत भी याद हैं। चार दशक पहले उसके शौहर पर आकाशीय बिजली गिरी...और उसकी मौत हो गई। उसके चार या पांच बच्चे थे। दो बेटे और तीन बेटियां। घर परिवार में मदद करने वाला कोई नहीं था। उसका शौहर सब्जियां बेचता था। लिहाजा उसके नहीं रहने पर उसने भी यही काम शुरु किया। मगर दिक्कत ये थी... उसे जोड़ना घटाना नहीं आता था। लोग उसे भुलवाकर ज्यादा सामान ले लेते थे, और पैसे कम देते थे। वो अक्सर पास के ही गांव में सब्जी बेचने जाया करती थी। जो ब्राह्मणों का गांव था। इनमें एक घर ऐसा था..। जहां उससे लोग सबसे ज्यादा प्यार से पेश आते थे। उसे खाना भी यहां मिल जाता था। वो किसी भी बरामदे में चुपचाप सो जाती... और नींद टूटने पर चाय, पानी से लेकर खाने पीने की फरमाइश हक से करती। मानो वो इस घर की मेहमान हो। और ये घर मेरा अपना था। मेरी मां (दादी).. उसके हालात से बहुत परेशान होती.. और जब गांव में लोग उसे ठग लेते तो मां को बहुत तकलीफ होती। लिहाजा मां ने उसे बेचने खरीदने से जुड़ी तालीम देनी शुरु की। धीरे धीरे वो जोड़ना घटाना भी सीख गई। और एक वक्त ऐसा भी आया जब वो दूसरों को ही चकमा देने में उस्ताद हो गई। खैर...। मेरे बाबूजी की कुल जमा उम्र 10-12 साल रही होगी.. जबसे ये मुसलमान बेवा हमारे घर का हिस्सा बनी हुई । वो इस घर में होने वाली तमाम शुभ अशुभ घटनाओं का हिस्सा बनी है। उसने शादी-विवाह से लेकर मय्यत तक देखी है। मेरी जेनरेशन के बच्चों को तो बड़े होने पर ही पता चल पाया कि वो हमारी कोई रिश्तेदार नहीं है।नहीं तो सभी कूजड़िन आजी करते रहे। बेशक बच्चे अक्लमंद हो गए.. मगर उन्हें भी उससे बहुत लगाव है। घर में कुछ भी खाने पीने को बने तो.. हर किसी को ध्यान रहता कि कूजड़िन आजी को मिला या नहीं। अब उसके बच्चों के भी बच्चे हो चुके हैं। मगर उसकी बहुओं ने उसे घर से निकाल दिया है। 65 – 70 की उम्र में भी वो अपना पेट खुद भरती है। ये अलग बात है... उसे इसकी चिंता नहीं करनी पड़ती.. जब भी उसके पास किल्लत होती है। वो हमारे यहां डेरा डाल देती है। हालांकि पहले के मुकाबले उसका आना जाना कम ही हो पाता है। मगर वो नहीं होकर भी घऱ में होती है। छोटे से लेकर बड़े तक हर कोई उसके बारे में खोज खबर लेता रहता है। उसका जिक्र हमेशा होता रहता है। बहुत दिन हो जाने पर घर के लोगों को ये भी डर सताने लगता है कहीं वो इस दुनिया से चली तो नहीं गई। लोग परेशान होते हैं.. इसी बीच वो कहीं न कहीं से टपक पड़ती है। वो सही मायने में इस घर का हिस्सा है..। बुआ वगैरह फोन पर भी उसकी खोज खबर लेती रहती हैं। जब वो ससुराल से यहां आती हैं तो बाकी लोगों की तरह ही कुजड़िन के लिए भी कुछ ना कुछ तोहफा होता है उनके पास। बहुत अजीब है ये कहानी.. एक हार्ड कोर ब्राह्मण परिवार में एक मुसलमान महिला दशकों से ऐसे रह रही है.. जैसे वो इसी परिवार की हो। ऊपर लगी तस्वीर, कूजड़िन आजी की है। पिछली बार गांव गया था तो मैंने खींच ली थी। ब्राह्मण परिवार का ये एक ऐसा इस्लाम कनेक्शन है...जो निजी तौर पर मुझे बहुत सकून देता है।
11 comments:
दूसरों के लिए भी अनुकरणीय बातें
ऐसे ही लोग देश की गंगा-जमुनी तहजीब के वाहक हैं।
इस प्रेरक व्यक्तित्व से परिचित कराने हेतु आभार।
मानवता का एक सुंदर और अनुकरणीय उदाहरण. नमन है ऐसे मानवों को जो प्रचार से दूर रहकर सिर्फ़ सत्य के लिए सत्य का दामन पकड़े हैं. आपको भी बहुत बधाई ऐसी जानकारी सामने लाने के लिए. लिखते रहिये!
प्रभावी आलेख!!
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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
बहुत सुंदर लिखा है. स्वागत है आपका.
सचमुच वधाई.
achcha laga aisi shakhsiyat ke baare mein jaankar...
kya kahna.yahi to saajha-sarokar hai.
मन की व्यथा का संप्रेषण ही जब बलवती हो जाए तो लेखन का आरम्भ होता hai.
और ये आप से मिलकर लगता hai, आपके सृजन से मिलना ही, आपसे मिलना hai.
apni रचनात्मक ऊर्जा को बनाए रखें.
कभी समय मिले तो आकर मेरे दिन-रात भी देख लें.
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokar.blogspot.com/
हर गांव शहर में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे।
va...............
Adbhut
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