
ऐसी लड़कियां परिवार के अनगढ़े कानूनों को तो लांघ जाती हैं...मगर उनके साए आजादी के खयाल के साथ साथ इनका पीछा करते हैं। ये लड़कियां आजादी की जिन अगली सीढ़ियों पर कदम रखती हैं... समाज और संस्कार के बंधन वहां पहले से जाल बिछाए बैठे रहते हैं। अपने घर से बीसियों किलोमीटर दूर किसी अनजान से शापिंग मॉल या फिर पार्क में चले जाने के बाद भी उन्हें जानी पहचानी नजरों का डर सताता ही रहता है। हर वक्त उनके जेहन में यही खयाल डेरा डाले रहता है...कहीं सामने से आ रही भीड़ में कोई जान पहचान वाला ना हो। कोई रिश्तेदार....कोई पड़ोस का अंकल या फिर शक्कर उधार मांगने आने वाली आंटी जी।
इन लड़कियों को आपने भी खूब ताड़ा होगा। इन्हें देखकर आपके जेहन में भी एकबारगी “गुड़ खाए, गुलगुल्ले से परहेज करे” वाला मुहावरा जरुर कौंधा होगा। मगर वो भी क्या करें। वो दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर या फिर चेन्नई जैसे शहरों में रहती जरुर हैं..मगर उनके मन की खिड़कियां उस मिडिल क्लास परिवार की जकड़न में खुलती हैं। जहां आजाद खयाल लड़की होना...एक फैशन तो हो सकता है..हकीकत कभी नहीं। ये वो लड़कियां हैं जो आजादी की बंदिशों के बीच जी रही हैं। दरअसल वो आजादी के रास्ते पर निकल तो पड़ी हैं...मगर उन्हें ट्रैफिक के कायदे कानून मालूम नहीं। लिहाजा, वो थोड़ा संभल संभलकर चलना चाहती हैं।
ये लड़कियां मिनी स्कर्ट तो पहनती हैं...लेकिन उसके नीचे वो टाइट फिट (काला कपड़ा...मालूम नहीं इसे क्या कहते हैं) पोशाक पहनती हैं....जिनमें बस एक आभास सा रह जाता है मिनी स्कर्ट पहनने का। ये लड़कियां शार्ट टॉप..और लो वेस्ट जींस तो पहनती हैं....मगर हर दो मिनट पर अपना टॉप पीछे से खींचती रहती हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती..ये लड़कियां डीप नेक का सूट सिलवा तो लेती हैं....मगर दुपट्टा सरक ना जाए...इसकी चिंता में दुबली होती रहती हैं। ये लड़कियां अपने प्रेमी के साथ हाथ पर हाथ रखे घंटों रेस्टोरेंट में रोमांस कर सकती हैं। लेकिन सड़क पर चलते हुए अपने कंधों या कमर पर उनका हाथ उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं है। ये वो लड़कियां हैं..जो मॉडर्न कपड़े दरअसल इसीलिए पहनती हैं कि लोग उन्हें देखें...उन पर गौर फरमाएं....लेकिन ऐसा कर लेने के बाद हर वक्त उनकी नजर इसी बात पर होती है...कहीं कोई उन्हें देख तो नहीं रहा।
आखिर वो ऐसा क्यों करती हैं। वो क्यों नहीं मान लेतीं कि वो कभी आजादी की उस परिकल्पना को नहीं जी पाएंगी जिसे वो इन कपड़ों में तलाशने की कोशिश में हैं। मगर वो भी क्या करें..वो समाज के उस मिडिल क्लास तबके से आती हैं....जहां पढ़ाई लिखाई तो ऊंची कराई जाती है। मगर साथ ही ये हिदायत भी दी जाती है कि किताबी बातें सिर्फ किताब तक रहें तो अच्छा। लेकिन तेजी से बदल रही दुनिया में खुद पर पिछड़ा होने का टैग लग जाने का डर भी उन्हें अंदर ही अंदर सालता रहता है। उन्हें लगता है मानो शादी से पहले जिंदगी में एक ब्वाय फ्रेंड होना उतना ही जरुरी है...जितना कोई दूसरा काम। उन्हें लगता है..अगर अभी चूक गए तो शायद फिर कभी इन कपड़ों से साबका नहीं होगा..। मगर ये सब कुछ इनकी खयालों की दुनिया का हिस्सा होता है...हकीकत में वो अपने उसूलों, संस्कारों और मर्यादाओं में इस कदर जकड़ी होती हैं...कि कसमसाहट भी नजर नहीं आती।
खैर, अगर आज तक आप ऐसी लड़कियों से नहीं मिले...तो जनाब जब आप रेड लाइट पर फंस जाएं तो बाइक सवार लड़के के पीछे बैठी लड़की को गौर से देखिए...। उसके बैठने का अंदाज आपको बता देगा...ये ओरिजनल मॉडर्न लड़की है...या फिर मेरे इस आर्टिकल की कैरेक्टर... जो आजादी की खुशफहमी को भरपूर जीना चाहती है.... उसे फिक्र तो है...मगर अपनी बेफिक्री की। वो आजाद तो होना चाहती है...लेकिन बंदिशों के साथ साथ। क्योंकि ये लड़की मिडिल क्लास की है।
19 comments:
क्या एक आदमी टाई पहनने से सभ्य बन जाता है, क्या लडकिया कुछ खास तरह के कपडे पहन कर ओर शरीर के कुछ अंगॊ को दिखा कर ही सभ्य कहलाएगी, क्या बिना ब्याफ़्रेंट बनाये वह जाहिल कहलायेगी, क्या शादी से पहले दो चार प्यार करने जरुर है???
मध्यवर्गीय मानसिकता पर अच्छा आलेख है। आधुनिकता और आजादी कपड़ों में नहीं। विचार और कर्म में है। यह कौन समझाएगा इन्हें। वर्जनाएँ तो इन्हें समझने का अवसर प्रदान करती नहीं।
बहुत प्रभावी आलेख है.
आपने सही खाका खीचा हैं . मिडिल क्लास क्या हर क्लास की लड़किया आज़ादी को जीना चाहती हैं पर नहीं कर पाती और ये झूठ समाज की देन हैं जहाँ छुप कर करने पर कोई दंड नहीं हैं पर खुल कर कहने , करने पर तमाम वर्जनाये हैं .
पर आपके लेख मे धार हैं अंत तक पढ़ना पडा
सिर्फ़ कपड़ों के तंगपने से आधुनिकता दर्शा रहा है आपका ये लेख। आज़ादी के साथ छोटे और तंग कपड़े पहन ले लड़की तो हाई क्लास हो जायेगी? बड़ा विचित्र लगा आपका मनोभाव...अभी और मैच्यओरिटी की ज़रूरत दिखी...माफ़ कीजियेगा...
मेरे विचार से आपका लेख मुझे भारतीय समाज की लड़कियों के परिवर्तन के दौर को बताता है |
Bahut achha lekh hai. madhyamvargeeya ladaki ki kai majbooriyan bhi ho sakti hain. usko na chah kar bhi yah sab karna padta ho yah bhi ho sakta hai.aapki yah baat bhi sahi lagti hai ki adhunik hone ki doud men kahin koi use peechhe na man le ya peechhe na chhod de yah mansikta bhi ho sakti hai. baharhal aapne likha achha hai.
बिल्कुल सही कहा आपने. मेरे ऑफिस में भी ऐसी लड़कियां मिल जायेंगी और सडको और माल में भी मिल जायेंगी. अफ़सोस है कि करना सब कुछ चाहती है पर छिपा कर .....
Manoshi ji से सहमत, पता नहीं लेखक क्या कहना चाहते हैं? क्या वे यह कहना चाहते हैं कि लो वेस्ट पहने लड़की की अंडरवियर दिखना जरूरी है तभी वह आधुनिक कहलायेगी, या फ़िर मिनी स्कर्ट पहनने पर जाँघें दिखना जरूरी है तभी उसे आधुनिकता माना जायेगा वरना नहीं? आधुनिकता की ये परिभाषा बड़ी विचित्र है… रेड लाइट पर रुकी बाइक के कितने युवा सवार होते हैं जो सिगरेट के खिलाफ़ कैम्पेन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, या फ़िर स्तन दिखाने वाली कितनी आधुनिक लड़कियाँ हैं जिन्हें ठीक से खाना बनाना आता है? "आधुनिकता"(?) और "मिडिल क्लास मेंटेलिटी"(?) यह मुहावरे हैं जो लम्पट पुरुषों द्वारा गढ़े गये हैं…
तुम्हारे लिखने में एक इमानदारी है जो पहले किसी लेख में मैंने देखी थी शायद तब टिप्पणी नही कर पाया था ...हो सकता है कुछ असहमतिया हो...पर ये भी हम सब की सोच का एक हिस्सा है.कुछ बातें बिल्कुल सटीक है
बहुत ही बेहतरीन लेख ..लिखने का साहस दिखाया ...बहुत ही अच्छा
वर्त्तमान में फैशन का जो अन्धानुकरण हमारे चारो तरफ़ दिख रहा है, उस पर ये आलेख बेहद सटीक और उम्दा है. कुछ लोगो को भले ही ये विचित्र लगे या गुजरे या आपकी मानसिकता में परिपक्वता न दिखे किंतु वास्तविकता तो यही है. जरुरत है ऐसे लोग अपने विचार में परिवर्तन लाये और दुसरो की मानसिकता पर प्रश्न करना बंद करे. मैंने कुछ ऐसे लोगो के भी कमेंट्स देखे जिन्होंने समझा ही नही कि लेखक का मंतव्य क्या है उल्टे ये लोग लेखक पर ही बरस रहे है, जो कि बेहद हास्यास्पद है. वही मुझे खुशी भी है कि कुछ महिलाओं ने इस लेख का समर्थन किया है जो कि उनके वृहद् सोच का परिचायक है. मै ऐसे लोगो को धन्यवाद् देना चाहूँगा जो वास्तविकता को उसी रूप में स्वीकार करते है. भले ही ये उनके वर्ग से सम्बन्ध रखता हो.
हमारे शहर की लड़कियाँ तो बगदाद की लगती हैं, बुरका जैसा कुछ लपेटे हुये हुये, प्रदूषण से बचने का बहाना किये हुये!
और आज़ाद होना कौन नहीं चाहता, अगर वो समझता है कि बंधन में है।
कुछ बाते तो बिल्कुल सही लिखी हैं इसकी मिसाल जैसा कि लेख में है मिल भी जाती हैं। या फिर दफ्तरों में भी दिख जाती हैं और साथ ही ये भी कि इन सबके बगैर वो पूर्ण नहीं समझती और यदि कोईं टोक दे तो बस...। लेकिन कई बातों कुछ ज्यादा होगई।
dear got theme right
regards
dear got theme right
regards
बढ़िया लिखा है आपने.. कमेंट्स भी अच्छे हैं..
मेरी आपसे कुछ सहमति और कुछ असमति है.. जो फिर कभी बताता हूँ..
daad deti hoon aapke sateek observation ko...bahut sacchai aur imandari hai is post me..par so called-middle class ladki ki yehi 'jhijhak'tathakathit 'maryadaaon' ko jeevit rakhti hain..aur ye maryada ki laqeer khichne ka adhikar aaj bhi samaj me purush ko hi hai...vishesh kar aapki 'middle class society me...
BILKUL SAHI KAHA AAPNE SIR
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