भारत में आतंकवादी हमले आम बात हो चले हैं। महामहिम शिवराज पाटिल जी की मेहरबानी से अब तो हम इसके आदती होते जा रहे हैं। हमारे भीतर एक किस्म की सहजता डेवलप होती जा रही है ऐसे हादसों को लेकर। मुंबई में इस बार जो कुछ हुआ उसे मैं निजी तौर पर मुल्क की अस्मिता का सामूहिक बलात्कार मानता हूं। नीचे लिखे हुए शब्द काफी गुस्से से उपजे हैं...लिहाजा अगर आपको चुभें भी तो...तर्क की कसौटी पर कोई बहस मत खड़ा करिएगा। क्योंकि...मैं और मेरी भावनाएं हमेशा जिम्मेदारी के दायरे में रहने को बाध्य नहीं हैं। - विवेक सत्य मित्रम्
Scene-1
ताज से धुआं निकल रहा है-
गोलियों की गड़गड़ाहट में-
उत्तेजना का संगीत कौंध रहा है-
कैमरों की निगाह से कुछ भी-
कहीं भी बच नहीं सकता-
पुलिस, सेना और पत्रकार-
एकदम मुस्तैद...चौकस खड़े हैं-
जान जोखिम में डालकर-
बहुतों के सीने गर्व से फूले हुए हैं-
शायद चार या पांच इंच तक-
Scene-2
जिंदा बच गए लोग-
अपनी किस्मत पर आंसू बहा रहे हैं-
हाय..! उन्हीं की लकीरों में लिखा था-
उन कायरों के सीने पर लटकना-
चमचमाता तमगा बनकर-
उन्हीं को देना था इकबालिया बयान-
देश की आर्थिक राजधानी के-
सामूहिक बलात्कार का।
उन्हें अपनी जिंदगी पर तरस आ रहा है-
मगर वो करते भी तो क्या-
मंदी के इस दौर में उनका बचना जरुरी था।
Scene-3
उधर मां के दूध से महरुम रहे कुछ हिजड़े -
मजबूर शिखंडियों की आड़ में-
एके 47 से आतिशबाजी में मशगूल हैं-
वो जानते हैं, खुदा उन्हें माफ कर देगा-
क्योंकि दुनिया में जेहाद जरुरी है-
और खून खराबा उनकी मजबूरी है-
Scene-4
वो देखो....उधर उस नरीमन हाउस को-
आखिरकार 41 घंटे में एक खंडहर-
आबाद हो गया है...काली वर्दी वालों से-
क्योंकि मातम का वक्त नहीं है-
इसलिए लाशों की गिनती जरुरी है-
Scene-5
एक लिजलिजा शेर भिनभिना रहा है-
कोतवाल भी अबकी सावधान है-
सूट बदलने का शौक नहीं फरमा सका-
सफेद कोट पहनी तो पहनी-
दिल्ली काफी दूर थी-
सो कालिख से काम चला लिया।
Scene-6
दुशासन को न्यौता भेजा है-
आखिर जांच तो होनी है-
भला उससे बेहतर कौन बता पाएगा-
अभी कितनी साड़ी बाकी है-
Scene-7
चुनावी मौसम में-
कुछ सफेदपोश भेड़िये तो दिख गए-
पर, अभी तक धरतीपुत्र नजर नहीं आया-
शायद वो गिनने में जुटा है-
मारे गए लोगों में भइया लोग कितने हैं-
और बचाने वालों में मराठी कितने-
Scene-8
खैर, तमाशा खत्म होने को है-
और मैं परेशान हूं, हमेशा की तरह-
आखिर, अब क्या रह गया-
टीआरपी के तराजू में तोलने के लिए ।
Saturday, November 29, 2008
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12 comments:
बहुत कठोर पर उतना ही सटीक व्यंग।किसी को तो कड़वा सच कहने की पहल करनी ही होगी। साधुवाद।
very nice janab. narayan narayan
अरे वाह इसे कहते है सुयर के पेशाब मै जुत्ते भीगो भीगो कर मारना, बहुत खुब, अब तो इन कमीनो क स्वागत इन्ही शव्दो से होना चाहिये.
धन्यवाद
अच्छी पहल।
सच है, भावनाएं हमेशा जिम्मेदारी के दायरे में रहने को बाध्य नहीं होतीं
कानून तोड़कर कह रहा हहूं.......दिल से
बहुत अच्ची है ....
हम सभी आज इस कड़वी हकीकत से रूबरू हैं लेकिन शायद उस तीक्ष्णता के साथ न कह पाएं जिस तरह से आपने कहा है। ये पीड़ा हम सभी की है और हमें मिलकर इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करनी होगी। हम लड़ना होगा आतंक के खिलाफ, उन बुज़दिलों के खिलाफ जो छिप कर हमले करते हैं और बेगुनाहों का खूब बहाते हैं। ऐसे लोगों की कोई कौम नहीं, कोई ईमान नहीं। और वो लोग भी कम दोषी नहीं हैं जो इस संजीदा मामले पर भी राजनीति करने से नहीं चूकते।
कन्धार के माफीनामा, और राजीनामा का है अंजाम मुम्बई का कोहराम ।
भून दिया होता कन्धार में तो मुम्बई न आ पाते जालिम ।
हमने ही छोड़े थे ये खुंख्वार उस दिन, आज मुम्बई में कहर ढाने के लिये ।।
इतिहास में दो शर्मनाक घटनायें हैं, पहली पूर्व केन्द्रीय मंत्र मुफ्ती मोहमद सईद के मंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी बेटी डॉं रूबिया सईद की रिहाई के लिये आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर खतरनाक आतंकवादीयों को रिहा करना, जिसके बाद एच.एम.टी. के जनरल मैनेजर खेड़ा की हत्या कर दी गयी । और दूसरी कन्धार विमान अपहरण काण्ड में आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर रिरियाना और अति खुख्वार आतंकवादीयों को रिहा कर देना । उसी का अंजाम सामने है । तमाशा यह कि जिन्होंने इतिहास में शर्मनाक कृत्य किये वे ही आज बहादुरी का दावा कर रहे हैं, अफसोस ऐसे शर्मसार इतिहास रचने वाले नेताओं की राजनीति पर । थू है उनके कुल और खानदान पर ।
bahut achhaa likha hai aapne .
itne dino tak kanha they aap ?
achha likhte hain.
विवेक जी आपने देश की मजबूरी..आतंकियों का दुस्साहस...बंधक बने लोगों की बेबसी...और मीडिया के टीआरपी लोभ को दिल और दिमाग से समझा है....काश ये समझ हमारी सरकारों को जाएं तो मुंबई फिर कभी शायद बंधक ना बने.....
शुक्रिया
विवेक जी आपने देश की मजबूरी..आतंकियों का दुस्साहस...बंधक बने लोगों की बेबसी...और मीडिया के टीआरपी लोभ को दिल और दिमाग से समझा है....काश ये समझ हमारी सरकारों को जाएं तो मुंबई फिर कभी शायद बंधक ना बने.....
शुक्रिया
क्या सही चोट की है आपने. बहुत से लोगों की आवाज़ को अपने शब्द दिए है और क्या बखूबी!!!
सटीक अभिव्यक्तिकरण
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