Saturday, September 13, 2008

फीचर फिल्म का शेष भाग 13 साल बाद (?)

साल 1995...। तवार का दिन है। सुबह सुबह नींद खुलती है, और कानों में आ जा आई बहार, ओ...मेरे राजकुमार.. तेरे बिन रहा ना जाए..टाइप का कोई गाना बिना पूछे चला आ रहा है। जो मिंकू आम दिनों में उठते उठते ही ट्वायलेट के दर्शन करता था। आज वो ब्रश करने की बजाए सीधे टीवी रुम की ओर बढ़ जाता है। किचन मेचाय बन रही है। मम्मी पिछले आधे घंटे से आवाजें लगा रही हैं... उठो बच्चों... चलो ब्रश करो... चाय बन रही है। मगर अभी तक मिंकू के अलावा दूसरे बच्चे जगे नहीं हैं मिंकू के जगने की आहट मम्मी को मिल गई है। ये बात उनके आवाज लगाने के अंदाज से जाहिर होता है..। अब मम्मी और जोर जोर से आवाज लगा रही हैं। अरे जल्दी से ब्रश करके आओ, चाय ठंडी हो रही है। मगर मिंकू पर इसका कोई असर नहीं है। वो इस कदर टीवी के सामने जम गया है, मानो उसके हटते ही प्रलय आ जाएगी जब वो टीवी पर नजरें गड़ाए बैठा होता है, उसका मुंह भी खुल जाता है। यकीन मानिए... टीवी प्रेम का ऐसा अद्भुत नजारा अब देखने को नहीं मिल सकता। टीवी रुम में ही पापा भी मौजूद हैं। मगर आज वो अखबार में इस तरह डूबे हुए हैं, मानो महीने भर का खर्चा एक ही दिन में वसूल कर लेंगे। मिंकू को ये दृश्य सरासर नागवार गुजरता है। उसे लगता है मानो टीवी का अपमान हो रहा है। इस बीच मम्मी चाय रख जाती हैं। पापा चाय पी भी लेते हैं। मगर मिंकू को कुछ भी होश नहीं है। एक के बाद एक सदाबहार गाने... जो हर दूसरे तीसरे हफ्ते रिपीट हो जाते हैं। अब तो उसके दिमाग में हर गाने की डीवीडी भी बन गई है। सीन आने से पहले ही उसके जेहन में वो दृश्य कौंध जाता है। खैर, रंगोली... खत्म हो जाती है। अब तक उसे कई बार डांट पड़ चुकी है ब्रश करने के लिए.... लिहाजा वो रंगोली खत्म होने के बाद एक मिनट भी देरी किए बिना ब्रश करने चला जाता है, डर है, अगर ऐसा नहीं किया तो, 9 बजे चंद्रकांता देखने पर पाबंदी ना लग जाए। लिहाजा वो अच्छा बच्चा बन जाता है। और करीब 15-20 मिनट में सारे काम निपटाकर नाश्ता भी कर लेता है। आज के दिन मिंकूचमुच बदला हुआ है। जो मिंकू स्कूल जाने से पहले और आने के बाद बमुश्किल ही कॉपी किताब को हाथ लगाता है। वो इतवार के दिन जल्दी से काम निपटाकर सुबह सुबह पढ़ने बैठ जाता है। दरअसल, उसे पता है...अगर उसकी ओर से कोई लूपहोल रह गया तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। उसमालूम है, गुड्डी और विक्की भी जग गए हैं... लिहाजा चंद्रकांता तो वो किसी भी कीमत पर देख लेगा...मगर शाम में उसे फिल्म देखने से वंचित होना पड़ सकता है। लिहाजा वो ये दिखाने में कुछ भी उठा नहीं रखता कि वो कितनी पढ़ाई कर रहा है... आम तौर पर पढ़ाई करते हुए वो अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लेता है...मगर आज तो दोनों पल्ले दो तरफ हैं। ताकि घर के लोग उसे पढ़ते हुए तो देखें ही....साथ ही साथ टीवी की भी आवाज उसे साफ सुनाई देती रहे। क्योंकि उसकी सिर्फ नजरें किताब में हैं। जेहन में तो टीवी है। इस बीच वो दूसरे कमरे में लगी घड़ी पर भी नजरे इनायत कर आता है। जैसे ही 9 बजते हैं...उसके भीतर कुछ होने लगता है। ऐसा लगता है, दिल कुछ कहा रहा है...और दिमाग कुछ और कर रहा है। दिल बैठ रहा है... कहीं चंद्रकांता का कोई सीन छूट ना जाए...।मगर दिमाग में तो कुछ और चलरहा है। जिसके आगे वो चंद्रकांता के एकाध सीन की कुर्बानी देने को तैयार है। आखिरकार... आवाज आती है...नौगढ़-विजयगढ़ में थी तकरार... नौगढ़ का था..जो राजकुमार....चंद्रकांता से करता था प्यार...। ऐसा लगता है उसके पैर बेकाबू हो जाते हैं...और वो पहुंच ही जाता है टीवी रुम में। चंद्रकांता देखने के बाद वो अच्छे बच्चों की तरह नहा धोकर.. बिल्कुल टाइम पर खाना खा लेता है। और एक बार फिर वो अपने कमरे में दिन भर पढ़ने का नाटक करता रहता है... क्योंकि शाम पांच बजे उसे हर हाल में फिल्म देखनी है...कहीं पापा पढ़ाई नहीं करने का बहाना बनाकर उसे फिल्म देखने से रोक ना दें....। इसके लिए वो दिन भर तपस्या करता है। पांच बजे से कुछ पहले ही...हक के साथ वो टीवी ऑन करता है। फिल्म शुरु होती है। अब मिंकू पूरी तरह टीवी में समा जाता है...कब डेढ़ घंटे निकल जाता है। उसे कोई होश नहीं होता...और सामने आ जाता है। फीचर फिल्म का शेष भाग....बजे। वो बार बार घड़ी देखता है.. कब फिर से शुरु हो पिक्चर। समाचार खत्म हो जाता है औऱ प्रचार शुरु हो जाता है। तभी अचानक एक टेक्स्ट प्लेट आती है.. फीचर फिल्म का शेष भाग थोड़ी देर में। अब वो और भी बेताब हो उठता... टीवी वालों को मन भर भला बुरा कहता है.. और पिक्चर शुरु हो...उससे ठीक पहले बिजली चली आ जाती है। और न जाने कितनी ही फिल्में हैं..जिनका शेष भाग आज 13 साल बीतने के बाद भी वो कभी नहीं देख पाया है।

3 comments:

sushant jha said...

लेख ने नॉस्टेलजिक कर दिया।

Smart Indian said...

अपना भी यही अनुभव है.

राजीव जैन said...

लगता है गुरु हम दोनों समकालीन है, मुझे भी रंगोली, चंद्रकांता और शेष भाग अच्छी तरह याद हैं। एक और चीज है जिसे अब बहुत मिस करता हूं रुकावट के लिए खेद है। सच बता रहा हूं अगर नई पीढ़ी (हमसे थोड़े छोटे!) को अगर आप बताएं कि टीवी पर रुकावट के लिए खेद आता था। तो उन्हें हमारी तकनीक के तेजी से परिवर्तन का सुखद अहसास होगा।