Thursday, September 25, 2008

पुण्य प्रसून वाजपेयी जी…कम से कम आप से ये उम्मीद नहीं थी !

( पुण्य प्रसून वाजपेयी जी ने अपने ब्लाग पर जामिया नगर में हुई मुठभेड़ के बारे में अलग नजरिया पेश किया था। मैं मूल रुप से डेस्क पर काम करने वाला पत्रकार हूं। मौके पर पहुंचने वाले रिपोर्टर की कहानी पर सवाल खड़ा करना मेरे लिए तार्किक नहीं है। इस मुठभेड़ को लेकर अलग अलग लोग जुदा-जुदा बातें कर रहे हैं, जो खुद वहां पहुंचे थे। मगर मीडिया में सिर्फ एक पक्ष ही दिख रहा है। पुण्य प्रसून वाजपेयी जी के लेख पर लिखने की वजह सिर्फ ये थी कि मैं तहेदिल से चाहता था कि कहानी का दूसरा पहलू भी सामने आए। मेरा लहजा थोड़ा कठोर हो गया है..मगर निजी तौर पर उन्हें निशाना बनाना मेरी मंशा नहीं है। ये सफाई मुझे इसलिए देनी पड़ रही है..क्योंकि उनके साथ काम कर चुके / कर रहे/ जानने वाले ..तमाम लोग इस मसले पर जिस तरह से चटखारे ले रहे हैं... मुझे लगा विचारों की लड़ाई में कहीं कोई गलत संदेश तो नहीं जा रहा। दूसरी बड़ी वजह ये है कि मेरे और पुण्य जी के लेख को भड़ास 4 मीडिया पर भी छाप दिया गया है...। लेकिन जो शीर्षक ("पुण्य प्रसून के ब्लाग लेख पर उठा विवाद") दिया गया है...मैं उससे कतई सहमत नहीं हूं...। विवाद खड़ा करना मेरा मकसद नहीं था...मैंने सिर्फ अपने दिल की बात कही है.. मैं सचमुच चाहता हूं.. सच्चाई सामने आनी चाहिए... क्योंकि पत्रकार होने के नाते हमारा काम यही है। पुण्य प्रसून जी सचमुच बड़े पत्रकार हैं...सम्माननीय हैं.....और ये मानने में मुझे कोई हर्ज नहीं है कि हममें से ज्यादातर लोग उनके जैसा होने की हसरत रखते हैं। मगर अपनी बात कहने का हक हम सभी को है.. मैंने बस वही किया है।)
पुण्य प्रसून वाजपेयी जी बड़े पत्रकार हैं। शायद अपने चैनल पर उनकी चली नहीं, लिहाजा वो ब्लाग की रणभूमि में उतर आए। उनके होते हुए भी, जी न्यूज ने मुठभेड़ में मारे गए मोहन चंद शर्मा को शहादत के फूल चढ़ाए गए। काल..कपाल..महाकाल जैसे प्रोग्राम्स दिखाकर भी टीआरपी सुधारने में नाकाम रहा ये चैनल भला बाजार का दबाव कहां तक झेल पाता। जिस जनभावना का खयाल रखते हुए बाकी चैनलों ने मोहनचंद शर्मा को शहादत से नवाजा...शायद वैसा ही दबाव जी न्यूज पर भी रहा हो। कुल मिलाकार पुण्य प्रसून जी मजबूर हुए.. वो खबर पढ़ने के लिए जिस पर उन्हें रत्ती भर भी यकीन नहीं था। कम से कम उनके ब्लाग पर छपे लेख से मेरे जैसे कम अक्ल इंसान तक यही संदेश पहुंचा। खैर, पुण्य प्रसून वाजपेयी जी ने अपने लेख में अपने दिल की बात कही। मुझे मालूम नहीं.. बाटला हाउस की तीसरी मंजिल की बातें सही हैं.. या उन्हें किसी विश्वस्त सूत्र से ऐसा पता चला है। मगर इतना जरुर है...उन्होंने जिस अंदाज में कुछ भी बिना खुलकर कहे.....कह दिया है.. वो कोई बड़ा पत्रकार ही कर सकता है। अगर आप लेख को गौर से पढ़ें तो उन्होंने एक दफा भी ये नहीं लिखा कि वो जामिया नगर में हुई मुठभेड़ को फर्जी मानते हैं। उन्होंने तो बस कुछ सवाल हवा में उछाल दिए हैं, जिन्हें हमारे आपके जैसे आम लोगों ने लपक लिया। आप इस लेख की बुनियाद पर ना तो उन पर एक खास समुदाय के तुष्टीकरण का आरोप जड़ सकते हैं.. ना ही एक बेबाक पत्रकार की भड़ास कह सकते हैं। क्योंकि ये लेख इतनी बुरी तरह से उलझा हुआ है...आप कहीं से भी कोई लूपहोल निकालकर उन्हें आतंकवादियों का हमदर्द साबित नहीं कर सकते। हालांकि इस पेचीदगी में वो अपनी बात बेहद सलीके से कह गये हैं। उनके अपने ब्लाग पर छपे इस लेख पर तमाम तरह की टिप्पणियां आई हैं...। कुछ बेवकूफ किस्म के लोगों ने उन्हें आतंकवादियों का हिमायती समझ लिया है.. तो कुछ ऐसे भी हैं...जो इस दबाव से बाहर ही नहीं निकल पाए हैं कि वाजपेयी जी देश के उन गिने चुने पत्रकारों में हैं.. जिनकी जुबान से निकली हर बात पर आम आदमी भरोसा कर लेता है। मीडिया से जुड़े कुछ लोग इसी दबाव में लेख पढ़ते पाए गए...कि पुण्य प्रसून वाजपेयी जी....जी न्यूज के कंसल्टेंट एडीटर हैं। उनमें एकाध ऐसे लोग हैं। जो या तो उनके साथ काम कर चुके हैं.. या फिर निकट भविष्य में काम करने की हसरत रखते हैं। हां.. इनमें कुछेक लोगों ने उनसे सीधे सीधे लोहा लिया है... शायद ये वो लोग हैं.. जिन्हें या तो उम्मीद नहीं है.. कि कभी उन्हें नौकरी के लिए पुण्य प्रसून वाजपेयी जी के पास जाना होगा. या फिर ये भी मुमकिन है कि अपने दिल की बात कहने में उन्हें डर नहीं लगता। वो बस सही और गलत में यकीन रखते हैं। खैर, जो भी हो..। निजी तौर पर मुझे ऐसा लगा कि अगर वाकई पुण्य प्रसून जी मानते हैं कि जो कुछ भी जामिया नगर में हुआ.. या फिर अभी भी हो रहा है... वो गलत है... फर्जी है। तो उन्हें इस बात को खुलकर रखना चाहिए। आखिरकार जर्नलिस्ट होने के नाते उनकी जवाबदेही बनती है कि सच्चाई को सामने ले आएं...। ब्लाग ब्लाग खेलना तो बच्चों का काम है। वो तो पत्रकारों की उस पीढ़ी से आते हैं.. जिन्होंने सही मायने में पत्रकारिता को जिया है। जिन्होंने न जाने कितने ही लोगों से हेड आन कॉलिजन करते हुए ये मुकाम हासिल किया है। मुझे मालूम है कि नौकरी करते हुए मालिक की एडिटोरियल पॉलिसी के खिलाफ जाना मुश्किल काम है...। लेकिन अगर सही मायने में नौकरी में दिक्कत आने का डर ही वो कारण है.. जिसकी वजह से जी न्यूज पर वो सच सामने नहीं आया..जो उस चैनल के आला पत्रकार को मालूम था.. तो कहीं न कहीं प्रसून जी वो तर्क खो देते हैं....जिसकी बुनियाद पर घुमा फिराकर ही सही..एनकाउंटर को फर्जी साबित करने की कोशिश हुई। साथ ही आप पुलिस और खुफिया एजेंसियों पर अंगुली उठाने का हक भी खो देते हैं..क्योंकि वो भी तो किसी ना किसी के दबाव में काम कर रहे हैं...। जब आप जैसा बड़ा पत्रकार नौकरी का रिस्क नहीं ले सकता जिसे अपने यहां बुलाने के लिए न जाने कितने चैनल बेताब होंगे... तो वो पुलिसवाले क्या लेंगे.. जिन्हें नौकरी पर आंच आने के बाद... सालों अदालतों के चक्कर लगाने पड़ेंगे...। और आप भी जानते हैं...अगर सरकार अपनी लाज बचाने के लिए फर्जी एनकाउंटर करा सकती है तो... अपने कारिंदों का क्या हस्र कर सकती है....। खैर, मेरा सिर्फ इतना आग्रह था...कि अगर आप सचमुच जानते थे.. कि पुलिस ने ज्यादती की है.. और जो कुछ भी हुआ.. वो फर्जी था...गलत था। तो ये बात ब्लाग पर नहीं आपके चैनल पर आनी चाहिए थी....। क्योंकि मेरे जैसे शख्स के लिए मुस्लिम समुदाय के उन साथियों को फेस करना मुश्किल हो जाता है... जो आप ही की तरह पुलिस, सरकार और मीडिया किसी पर यकीन नहीं करते। मगर कैमरे पर जाते ही आप ही की तरह वही भाषा बोलने लगते हैं... जो चैनल चाहता है.. मालिकान चाहते हैं। आखिर सच दिखाने की शपथ कौन निभाएगा...। अगर आप सचमुच इंसानियत के पैरोकार हैं...आप सही मायने में सही – गलत का फर्क करना जानते हैं.... तो वो सच आपके चैनल पर आना चाहिए..., जो आपको मालूम है। नहीं... अगर आप भी...हम जैसे अदने पत्रकारों की बिरादरी के हैं....तो कोई बात नहीं...जिसके लिए हम लिखते हैं.. आप भी लिखिए। वैसे आपको बता दूं आपकी पोस्ट पर अभी तक 25 टिप्पणियां आ गई थीं....और करीब 125 लोगों ने लेख पढ़ा...।

14 comments:

Asha Joglekar said...

चलिये एक टिप्पणी हमारी भी ।

Gyan Darpan said...

प्रसून ने जो कुछ भी लिखा सवाल उठाये ग़लत ही उठाये है उनका लेख गैर जिमेदाराना है और इस लेख ने इनके कद को छोटा ही किया है लानत है इनकी मानसिकता पर ,इंसानियत की वकालत करते करते शायद ये भी अरुंधती राय की तरह ही बकवास करने लगें ,ऐसे लोगों का सामाजिक बहिस्कार करना होगा

श्रीकांत पाराशर said...

Bandhu, aapne satpratishat sahi likha hai. darasal punya prasoonji khud itne confuse rahte hain ki ve theek se baat nahin rakh paate. vaise itne bade patrakar ke liye yah likhne ki bajai yah likhna theek rahega ki ve itne chatur hain ki apne man ki bhadas bhi nikal lete hain aur kisi ke pakad men bhi nahi aate. aapne sabse marke ki baat yah kahi hai ki unka lekh uljha hua hai. unka har lekh uljha rahta hai. ve poorvagrah se grasit hain. har sahi galat ko ulte dhang se sochne se hi koi needar patrakar nahin ho jata. blog ki dunia men unki koi trp nahi badhne wali.

Anil Pusadkar said...

मैनेजमैन्ट के हावी होने के बाद अच्छे पत्रकारों की हालत का ताज़ा उदाहरण है बाजपेई जी,आखिर चैनल बदलने की भी तो कोइ वजह होती है।

सौदामिनी said...

आपने तो प्रसून जी की लेख की बखिया उधेड़ दी। उन्होंने बड़ी चतुराई के साथ ग़लत को सही ठहराने की कोशिश की है । पत्रकारिता में बेशक वो बड़ा नाम हैं लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि उन्हें ग़लत को सही साबित करने का लाइसेंस मिल जाता है। हमारा देश एक अरसे से आतंकवाद का दंश सिर्फ इसलिए झेल रहा है क्योंकि आतंकवादियों के खिलाफ़ सख्त रवैया अख्तियार नहीं किया गया। आज पाकिस्तान के इशारे पर जिस तरह से हमारे देश में जगह-जगह सुनियोजित तरीके से बम ब्लास्ट करवाए जा रहे हैं, ऐसे में ज़रूरत है एकजुटता दिखाकर इनका मुकाबला करने की, ना कि लोकतंत्र में मिलने वाले अधिकारों के बेजा इस्तेमाल की। देश की संप्रभुता सबसे ऊपर है और जो भी इसके खिलाफ़ काम करेगा वो किसी भी नज़रिए से सही नहीं ठहराया जा सकता। प्रसून जी आपका समर्थन करने वाले लोग सिर्फ आपकी चमचागिरी करने में लगे हैं....

makrand said...

dear u got great sense
kindly check whether i am write or wrong
visit my blog if possibe and having a time
regards

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

भई, सुशांत जी ने बिल्कुल सही लिखा है...कहां हैं वाजपेयी जी, अपनी हालत नहीं देखी क्या उन्होंने, उनके बारे में क्या-क्या लिखा जा रहा है...कहीं मान-हानि का मुकदमा न ठोंक दें...वैसे मुझे पता नहीं क्यों लग रहा है कि उनका पासवर्ड हैक करके किसी और ने लिख दिया है उनके नाम से....hahahahaha!

राज भाटिय़ा said...

भाई ओर बातो को तो हमे पता नही लेकिन इस एक बात से हमे आपत्ति हे, अगर आईंदा भी आप ऎसी भाषा मे बोलेगे तो हम माफ़ी चाहेगे...*कुछ बेवकूफ किस्म के लोगों ने उन्हें *** देखिये सभी लोगो के अपने अपने विचार होते हे किसी कॊ भी इस तरह से मत कहीये आप से निवेदन हे, बाकी आप का बांलग हे आप को पुरी आजादी हे जो चाहे लिखे.
धन्यवाद

Richa Sakalley said...

विवेक सत्य मित्रम जी..कहना बहुत आसान होता है जिंदगी में..करना ही कठिन होता है..आप अपनी अपेक्षाओं और उम्मीदों को खुद पूरी करने की ताकत रखें..बड़े आश्चर्य की बात है कि आप जब ये बात जानते हैं कि व्यावसायिक मजबूरी आज का सत्य है फिर भी आप सवाल उठा रहे है..पत्रकार बड़ा हो या छोटा.वो पत्रकार होता है..और मजबूरी मजबूरी होती है..रही बात प्रसून जी की तो मैं आपको बता दूं कि पूरी ताकत से, बनती कोशिश मैने उनको प्रोफेशनल लाइफ में पत्रकारों और पत्रकारिता के मूल्यों के लिए जूझते देखा है..तमाम मजबूरियों के बावजूद !!!....कैसे अयोग्य, अशिक्षितों और असुरक्षितों की एक बड़ी लॉबी किसी की संवेदना और सहजता को पूरी योजना से कुचलती है इसे देखिए, महसूस करिए और फिर बोलिए.एक बात और मैने ये बात इसलिए नहीं लिखी कि मैं इस दबाव में हूं कि प्रसून जी बड़े पत्रकार हैं.मैने सच लिखा है..हां आपकी तरह नाम के पीछे सत्य मित्रम नहीं लगाया है...चलिए आप से कहती हूं प्रसून जी के लेख से आपको सच पता चल गया..अब आप एक पत्रकार होने के नाते..इंसान होने के नाते क्या करने वाले हैं..जनाब मैं जानती हूं ये बचकाना सवाल है..आज के दौर में जब इतनी विसंगतियां है, तो एक पत्रकार यदि मजबूरीवश नहीं उभर पाईं अपनी दबी बात, कुंठित संवेदना को ब्लॉग के माध्यम से रख देता है.कहने का कोई और माध्यम चुन लेता है तो 125 क्या 525 क्या.. यदि पांच लोग भी प्रसून जी के लेख को पढ़कर बात करते है तर्क करते हैं तो सच मानिए वो पत्रकार समाज से सीधे संवाद करने में सफल हो गया है..आज के दौर में इन समस्याओं का हल ढूंढने का ये भी एक तरीका है..आखिर पता तो चले आम आदमी का पैरोकार बताने वाले ढेर सारे लोग इन मुद्दों पर क्या राय़ रखते हैं..कहां ले जाना चाहते हैं ये देश को..क्या ये अच्छी बात है कि एक लोकतांत्रिक गणतांत्रिक राज्य की इंस्टीट्यूशनल बॉडीज, राज्य को सुरक्षा देने वाली शक्तियां मजबूर शब्द की गुलाम हैं..और ये सत्य है विवेक सत्य मित्रम जी..सत्य को स्वीकार करिए..हां मौका जहां मिले जहां मजबूरी न हो वहां खुल कर कहिए..
ऋचा साकल्ले..

विवेक सत्य मित्रम् said...

ऋचा जी, आपने जो कुछ भी कहा..सारी बातें सही हैं। मगर क्या हमें मान लेना चाहिए...ट्रेनी से कंसल्टेंट एडीटर बन जाने के बाद भी..हमें, आपको,और हमारे जैसे लाखों पत्रकारों को...इसी तरह की व्यावसायिक मजबूरियों के आगे घुटना टेकना होगा..। अगर सचमुच इसका जवाब हां में है...तो आपको मैं बता दूं...आने वाले 10-15 सालों में वो पीढ़ी भी पत्रकारिता में नहीं बचेगी.. जो ब्लाग पर भी सच कह सके...। बचेंगे बस वो लॉबिंग करने वाले...तलवे चाटने वाले... दुम हिलाकर हर बात में हां कहने वाले...और सियासत से लेकर ब्यूरोक्रेशी तक दलाली करने वाले तथाकथित पत्रकार...जिनसे पुण्य जी ही नहीं.. हर वो शख्स जूझ रहा है.. जिसे सच कहने और उसे जीने की आदत लग गई है। खैर..पहली बार किसी ने सार्थक टिप्पणी दी है..इसके लिए आपको साधुवाद...। और हां.. आपको ये साफ करता चलूं...विवेक के आगे सत्य मित्रम् मैंने नहीं लगाया है... बाबूजी साहित्यकार हैं...उन्हें जो नाम ठीक लगा..रख दिया। आपको नहीं जमा हो तो ..मैं कुछ नहीं कर सकता।

Richa Sakalley said...

No..don't clarify it..It was never be in my intentions to make comment on your name (Its a beautiful name) but now you can understand that how foolish the personal comments are..if the issue discussing by all of us & initiated by Prasunji on virtual board is very sensitive & for the public concern.
Richa Sakalley.

surender said...

अरे विवेक भाई क्या आजकल वाजपेई जी टारगेट हैं क्या ऐसा तो कुछ भी नहीं लिखा है सब कुछ तो समझ से बाहर है.....वो खुद तो कनफ्यूज़ड हैं लिखा क्या है सब कुछ तो समझ से बाहर है .

Unknown said...

bhai satya mitram,
patrakarita ka jo daur abhi chal raha hai usme richa g jaise comments ka bura nahi manna chahiye. Punya g ki tarafdari karte-karte wo khud hi u tamam bato ko kah gayi jo apne pahle kaha tha. Itna to tay ho gaya hai ki hum jaise chote lago ne jis punya prasun ko apna hero mana tha Bazarwad ke is daur me khud bikhar chuka hai. TV pe incounter par sawal uthakar shayad wo apni lambi salary ko justified nahi kar pate shayad iski pida ne hi unhe blog par dhakel diya. Kuch dino pahle ki bat hai bhadas par unka interview aya tha-'Aj ke patrakaro ko khud ko d class karno hoga nahi to lakh lakh rupye ki naukari bachane ke liye sab kuch karenge patrakaria nahi kar payenge.' Mere pas iske alawa bolne ke liye kuch nahi. Ha, jaha tak richa ki bat hai viswas rakhiye jis tarike ki confusing bate unhone likhi hain punya g khush to nahi hi hue honge.
Sanjay, patna.

विनोद अग्रहरि said...

Bloggers ke saath ye bahut badi dikkat hai ki mudde ki behas jald di mudde se bhatak jaati hai. Prasoon ji ne kya kaha, Vivek ne kya jawab diya, isse bada hai wo mudda jisper wo baat kar rahe hain. Aur sach poochhiye to ab humein us mudde se bhi aage badh chalna chahiye. Desh mein aur bhi bahut cheezein ho rahi hain. Main ye nahin kehta ki in baaton ko bisra dijiye. Magar, thoda aage bhi badhte rehna zaroori hai.
Vinod Agrahari.