इसी साल मार्च की बात है। चैनल की मारामारी के बीच बहन (बुआ की लड़की) की शादी आ पड़ी। हम भाई-बहनों की जेनरेशन में पहली शादी थी। लिहाजा बमुश्किल मिली दो दिन की छुट्टी में हैदराबाद पहुंच गया। जिस घर में शादी हो, उसका माहौल कैसा होता है... ये बताने की जरुरत नहीं। मगर अक्सर ही देखा है.. ऐसे माहौल में लड़की के पास कुछ खास काम नहीं होता। ऐसा ही कुछ यहां भी था। उम्र में मुझसे तकरीबन 3 साल छोटी बहन एक कमरे में चुपचाप पड़ी थी। सभी लोग अपने अपने काम में मशगूल.. हों भी क्यों ना... शाम में बारात जो आनी थी। ऐसे में जिसकी शादी थी... सबसे ज्यादा फुर्सत में वही था। बहन से मुलाकात सालों बाद हो रही थी। बीच में शिकायतों का कार्यक्रम चलता रहा। भैया.. आप तो भूल ही गए हैं.. आप कभी फोन भी नहीं करते... कभी हैदराबाद आइए ना। आखिरकार हैदराबाद मैं पहुंच ही गया था..। वो भी तब जब अगली ही सुबह बहन की विदाई होनी थी। लिहाजा मैंने सोचा उससे बात की जाए। अब तो ना जाने कब मुलाकात होगी। मैंने शुरुआत की। एक बार बात निकली तो मिनटों में बहुत दूर तक गई। हम बमुश्किल कुछ ही लम्हों में सालों का सफर तय कर गए। जवानी की उम्र से किशोरावस्था..और आखिर में बचपन..। यही वो वक्त था, जब हमारी मुलाकातें ज्यादा होती थीं। हम सभी भाई बहन गर्मियों की छुट्टी में गांव में जमा होते थे। फिर जो उधम चौकड़ी होती.. मजा आ जाता। बहन के साथ बातचीत करते हुए हम दोनों ही बचपन में पहुंच गए थे। तभी अचानक उसे शरारत सूझी और उसने कहा “मेरे पास आपका एक फोटो पड़ा है जो मैं भाभी (होने वाली) को दिखाऊंगी.. और जब आपके बच्चे होंगे तब उन्हें”। इतना कहकर वो जोर जोर से हंसने लगी। मैंने पूछा, भला ऐसा क्या खास है इसमें। वो कुछ भी नहीं कहती...बस जोर जोर से ठहाके लगाती। कुछ देर बाद इस बातचीत में बुआ भी शामिल हो गईं... वो भी फोटो की बात पर हंसने लगीं। देखते ही देखते छोटा भाई (बुआ का लड़का) भी बिना कुछ कहे...ठहाके लगा रहा था। लेकिन कोई कुछ बताने को तैयार नहीं था... फोटो में ऐसा क्या था। बहुत मशक्कत के बाद जब फोटो सामने आई... मैं बुरी तरह झेंप गया। इसलिए भी कि.. ये फोटो शादी में जमा हुए दूसरे लोग भी उत्सुकतावश देख रहे थे। उसमें कुछ लड़कियां भी थीं। जो हमउम्र थीं। मेरी हालत ऐसी हो गई.. जैसे काटो तो खून नहीं। दरअसल ये फोटो जब खिंची गई थी..मेरी उम्र कुछ 3 या 4 साल रही होगी। इस फोटो में मैं बिल्कुल नंगा था..। यही नहीं मेरे चेहरे पर गजब की मुस्कान थी। ये फोटो मेरी होकर भी मेरी नहीं थी, फिर भी न जाने क्यों मुझे बहुत शर्म आ रही थी। निश्चित तौर पर मुझे उस वक्त समझ नहीं थी... नंगा होना शर्म की बात है। जबसे होश संभाला.. बिना तौलिया लपेटे मैं कभी नहीं नहाया। कपड़े बदलते हुए भी हमेशा ध्यान रखा.. कोई देख तो नहीं रहा है। खैर, ये तस्वीर मेरी एक बुआ ने ही खिंची थी। बेशक उस वक्त मैं झेंप जरुर रहा था.. मगर बचपन की इस तस्वीर ने मेरे भीतर एक अजीब सा उल्लास भर दिया.. और मैं अचानक ही बेहद खुश हो गया। काफी देर तक मैं उस तस्वीर को देखता रहा...। मैं सोचता रहा.. क्या मैंने उस वक्त फोटो खींचने का विरोध किया होगा। क्या मुझे ये मालूम भी होगा उस वक्त.. कि नंगा होना अश्लीलता की श्रेणी में आ जाता है। खैर जो भी, तस्वीर के बहाने मैं अपने बचपन में गोते लगाता रहा। ये सोचकर भी अजीब से अहसास हिलोरें मार रहे थे.. अगर ये फोटो मेरी बीवी (होने वाली) या मेरे बच्चों के हाथ लगेगी... तो उन्हें कैसा लगेगा। पर मुझे लगता है... ये वो खूबसूरत हादसा है जो हममें से ज्यादातर लोगों के साथ हुआ होगा...। सचमुच बचपन का कोई जवाब नहीं..। चलते चलते आपको ये जरुर बताना चाहूंगा... ऊपर लगी तस्वीर मेरी नहीं, इंटरनेट पर अपनी ऐसी तस्वीर डालने की हिम्मत, इस उम्र में तो मैं नहीं जुटा सकता।Friday, September 12, 2008
क्या आपने भी खिंचवाई है कभी अपनी नंगी तस्वीर ?
इसी साल मार्च की बात है। चैनल की मारामारी के बीच बहन (बुआ की लड़की) की शादी आ पड़ी। हम भाई-बहनों की जेनरेशन में पहली शादी थी। लिहाजा बमुश्किल मिली दो दिन की छुट्टी में हैदराबाद पहुंच गया। जिस घर में शादी हो, उसका माहौल कैसा होता है... ये बताने की जरुरत नहीं। मगर अक्सर ही देखा है.. ऐसे माहौल में लड़की के पास कुछ खास काम नहीं होता। ऐसा ही कुछ यहां भी था। उम्र में मुझसे तकरीबन 3 साल छोटी बहन एक कमरे में चुपचाप पड़ी थी। सभी लोग अपने अपने काम में मशगूल.. हों भी क्यों ना... शाम में बारात जो आनी थी। ऐसे में जिसकी शादी थी... सबसे ज्यादा फुर्सत में वही था। बहन से मुलाकात सालों बाद हो रही थी। बीच में शिकायतों का कार्यक्रम चलता रहा। भैया.. आप तो भूल ही गए हैं.. आप कभी फोन भी नहीं करते... कभी हैदराबाद आइए ना। आखिरकार हैदराबाद मैं पहुंच ही गया था..। वो भी तब जब अगली ही सुबह बहन की विदाई होनी थी। लिहाजा मैंने सोचा उससे बात की जाए। अब तो ना जाने कब मुलाकात होगी। मैंने शुरुआत की। एक बार बात निकली तो मिनटों में बहुत दूर तक गई। हम बमुश्किल कुछ ही लम्हों में सालों का सफर तय कर गए। जवानी की उम्र से किशोरावस्था..और आखिर में बचपन..। यही वो वक्त था, जब हमारी मुलाकातें ज्यादा होती थीं। हम सभी भाई बहन गर्मियों की छुट्टी में गांव में जमा होते थे। फिर जो उधम चौकड़ी होती.. मजा आ जाता। बहन के साथ बातचीत करते हुए हम दोनों ही बचपन में पहुंच गए थे। तभी अचानक उसे शरारत सूझी और उसने कहा “मेरे पास आपका एक फोटो पड़ा है जो मैं भाभी (होने वाली) को दिखाऊंगी.. और जब आपके बच्चे होंगे तब उन्हें”। इतना कहकर वो जोर जोर से हंसने लगी। मैंने पूछा, भला ऐसा क्या खास है इसमें। वो कुछ भी नहीं कहती...बस जोर जोर से ठहाके लगाती। कुछ देर बाद इस बातचीत में बुआ भी शामिल हो गईं... वो भी फोटो की बात पर हंसने लगीं। देखते ही देखते छोटा भाई (बुआ का लड़का) भी बिना कुछ कहे...ठहाके लगा रहा था। लेकिन कोई कुछ बताने को तैयार नहीं था... फोटो में ऐसा क्या था। बहुत मशक्कत के बाद जब फोटो सामने आई... मैं बुरी तरह झेंप गया। इसलिए भी कि.. ये फोटो शादी में जमा हुए दूसरे लोग भी उत्सुकतावश देख रहे थे। उसमें कुछ लड़कियां भी थीं। जो हमउम्र थीं। मेरी हालत ऐसी हो गई.. जैसे काटो तो खून नहीं। दरअसल ये फोटो जब खिंची गई थी..मेरी उम्र कुछ 3 या 4 साल रही होगी। इस फोटो में मैं बिल्कुल नंगा था..। यही नहीं मेरे चेहरे पर गजब की मुस्कान थी। ये फोटो मेरी होकर भी मेरी नहीं थी, फिर भी न जाने क्यों मुझे बहुत शर्म आ रही थी। निश्चित तौर पर मुझे उस वक्त समझ नहीं थी... नंगा होना शर्म की बात है। जबसे होश संभाला.. बिना तौलिया लपेटे मैं कभी नहीं नहाया। कपड़े बदलते हुए भी हमेशा ध्यान रखा.. कोई देख तो नहीं रहा है। खैर, ये तस्वीर मेरी एक बुआ ने ही खिंची थी। बेशक उस वक्त मैं झेंप जरुर रहा था.. मगर बचपन की इस तस्वीर ने मेरे भीतर एक अजीब सा उल्लास भर दिया.. और मैं अचानक ही बेहद खुश हो गया। काफी देर तक मैं उस तस्वीर को देखता रहा...। मैं सोचता रहा.. क्या मैंने उस वक्त फोटो खींचने का विरोध किया होगा। क्या मुझे ये मालूम भी होगा उस वक्त.. कि नंगा होना अश्लीलता की श्रेणी में आ जाता है। खैर जो भी, तस्वीर के बहाने मैं अपने बचपन में गोते लगाता रहा। ये सोचकर भी अजीब से अहसास हिलोरें मार रहे थे.. अगर ये फोटो मेरी बीवी (होने वाली) या मेरे बच्चों के हाथ लगेगी... तो उन्हें कैसा लगेगा। पर मुझे लगता है... ये वो खूबसूरत हादसा है जो हममें से ज्यादातर लोगों के साथ हुआ होगा...। सचमुच बचपन का कोई जवाब नहीं..। चलते चलते आपको ये जरुर बताना चाहूंगा... ऊपर लगी तस्वीर मेरी नहीं, इंटरनेट पर अपनी ऐसी तस्वीर डालने की हिम्मत, इस उम्र में तो मैं नहीं जुटा सकता।
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9 comments:
मेरे बेटे ने अपनी ऐसी ही तस्वीर तीन साल की उम्र में जिद करके खुद ही खिंचवाई थी . जब छ्: साल का होने पर उसने यह तस्वीर दोबारा देखी तो जोर जोर से रोने लगा और उस तस्वीर को फडवा के ही चुप हुआ .
मैं समझ गया था की आपकी पोस्ट है तो इस शीर्षक में भी कुछ ख़ास बात होगी ही - और वही हुआ. सच है बच्चों को क्या पता की सभ्य समाज में क्या-क्या ठीक नहीं समझा जाता है. मगर बड़ों को तो पता है न - जो ख़ुद नहीं करते उससे बच्चों को भी दूर रखना ही सामान्य दिखता है.
:)
आपने बड़ी अच्छी बात शेयर की। बच्चों की नंगी फोटो खिंचने की एक शोख परंपरा-सी रही है। 2-3 साल तक के बच्चों के चेहरे की मासूमीयत में उनका नंगापन छुप जाता है।
"मेरी हालत ऐसी हो गई.. जैसे काटो तो खून नहीं।"
हम सब इस तरह की घटनाओं से चार हो चुके हैं एवं पहले काटो तो खून नहीं होता है, बाद में हंसने लगते है!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
:(
हम भी भुक्तभोगी हैं :-)
बढ़िया तस्वीर है। लेख भी ठीकै है। चल गया! :)
achha likha aapne bahuton ko bachpan ki yaad dila di,hum bhi gote kha rahe hain abhi tak ,anand aa gaya ,badhai
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